Group – A- Public Finance
Contents
- 1 Group – A- Public Finance
- 1.1 Module -1
- 1.1.1 Public Finance.Meaning, Scope And Function. सार्वजनिक वित्त क्या है?
- 1.1.2 Public Finance & Private Finance || सार्वजनिक वित्त एवं निजी वित्त
- 1.1.3 Public Good s & Private Goods ( सार्वजनिक सामान और निजी सामान )
- 1.1.4 Maximum Social Advantage theory -अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धांत
- 1.1.5 Role of Govt in a Mixed Economy (मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका)
- 1.2 Module – 2
- 1.3 Module- 3
- 1.3.1 Taxation (कराधान)
- 1.3.2 Canon‘s of Taxation – करारोपण के सिद्धांत
- 1.3.3 Characteristics of good tax system (अच्छी कर प्रणाली के लक्षण )
- 1.3.4 Benefits Principle of taxation (कराधान के लाभ सिद्धांत)
- 1.3.5 Ability to Pay Principle of Taxation / कराधान के सिद्धांत का भुगतान करने की क्षमता
- 1.3.6 Direct and Indirect Tax of Government ( सरकार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर )
- 1.3.7 Shifting and Incidence of Taxation / स्थानांतरण और कराधान की घटना
- 1.4 Module – 4:
- 1.1 Module -1
- 2 Group – B – History of Economic Thought
- 2.1 Module – 5:
- 2.2 Module – 6:
- 2.2.1 Classical to Neo-Classical Economists (शास्त्रीय से नव-शास्त्रीय अर्थशास्त्री)
- 2.2.2
- 2.2.3 Adam Smith
- 2.2.4
- 2.2.5 Malthusian Theory of Population (जनसंख्या का माल्थुसियन सिद्धांत)
- 2.2.6
- 2.2.7 David Ricardo and his Contribution to economic Literature
- 2.2.8
- 2.2.9 Marginal Revolution (सीमांत क्रांति) / Marginal economics (सीमांत अर्थशास्त्र)
- 2.2.10
- 2.2.11 Karl Marx – Theory Of Surplus Value (अधिशेष मूल्य का सिद्धांत)
- 2.2.12
- 2.3 Module – 7:
Module -1
Public Finance.Meaning, Scope And Function. सार्वजनिक वित्त क्या है?
Public finance is the approach to managing the public funds in the country’s economy that plays the most important role in the development and growth of the nation, both domestically and internationally. It also affects every stakeholder of the country, whether a citizen or not.
सार्वजनिक वित्त देश की अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक निधियों के प्रबंधन का दृष्टिकोण है जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के विकास और विकास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह देश के प्रत्येक हितधारक को भी प्रभावित करता है, चाहे वह नागरिक हो या नहीं।
Public Finance & Private Finance || सार्वजनिक वित्त एवं निजी वित्त
The main difference between public and private finance is that public finance is concerned with financial activities and decisions made by government entities, while private finance is concerned with financial activities and decisions made by individuals and private businesses.
सार्वजनिक और निजी वित्त के बीच मुख्य अंतर यह है कि सार्वजनिक वित्त का संबंध वित्तीय गतिविधियों और सरकारी संस्थाओं द्वारा किए गए निर्णयों से है, जबकि निजी वित्त का संबंध वित्तीय गतिविधियों और व्यक्तियों और निजी व्यवसायों द्वारा किए गए निर्णयों से है।
Public Good s & Private Goods ( सार्वजनिक सामान और निजी सामान )
A private good is not shared with anybody else, but can be sold along with transferring rights to use or consume it. Private goods are different from public goods, which are available to everyone regardless of income levels.
एक निजी वस्तु किसी और के साथ साझा नहीं की जाती है, लेकिन इसे उपयोग या उपभोग करने के अधिकारों के हस्तांतरण के साथ बेचा जा सकता है। निजी वस्तुएँ सार्वजनिक वस्तुओं से भिन्न होती हैं, जो आय स्तर की परवाह किए बिना सभी के लिए उपलब्ध होती हैं।
Rival – प्रतिद्वंद्वी
Maximum Social Advantage theory -अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धांत
The Principle of Maximum Social Advantage is the principle that governs the operation of public finance (financial activities of the government) to maximize the economic welfare of the society as a whole.
अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धांत वह सिद्धांत है जो समग्र रूप से समाज के आर्थिक कल्याण को अधिकतम करने के लिए सार्वजनिक वित्त (सरकार की वित्तीय गतिविधियों) के संचालन को नियंत्रित करता है।
Role of Govt in a Mixed Economy (मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका)
Mixed economic systems are not laissez-faire systems, because the government is involved in planning the use of some resources and can exert control over businesses in the private sector. Governments may seek to redistribute wealth by taxing the private sector and by using funds from taxes to promote social objectives.
मिश्रित आर्थिक प्रणालियाँ अहस्तक्षेप प्रणाली नहीं हैं, क्योंकि सरकार कुछ संसाधनों के उपयोग की योजना बनाने में शामिल है और निजी क्षेत्र में व्यवसायों पर नियंत्रण कर सकती है। सरकारें निजी क्षेत्र पर कर लगाकर और सामाजिक उद्देश्यों को बढ़ावा देने के लिए करों से धन का उपयोग करके धन का पुनर्वितरण कर सकती हैं।
Module – 2
Public Expenditure ( सरकारी व्यय )
Public expenditure means the expenditure on the developmental and non-developmental activity such as construction of roadways and dams, and other activity.
सार्वजनिक व्यय का अर्थ है विकासात्मक और गैर-विकासात्मक गतिविधियों जैसे सड़कों और बांधों के निर्माण और अन्य गतिविधियों पर व्यय
Causes Of Growth Of Public Expenditure (सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण)
Module- 3
Taxation (कराधान)
Canon‘s of Taxation – करारोपण के सिद्धांत
Characteristics of good tax system (अच्छी कर प्रणाली के लक्षण )
Benefits Principle of taxation (कराधान के लाभ सिद्धांत)
Ability to Pay Principle of Taxation / कराधान के सिद्धांत का भुगतान करने की क्षमता
Direct and Indirect Tax of Government ( सरकार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर )
Shifting and Incidence of Taxation / स्थानांतरण और कराधान की घटना
Incidence of Tax ( कर की घटना ) / कर भार (tax burden)
अर्थशास्त्र में, किसी कर का आर्थिक कल्याण के वितरण पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे करापात (tax incidence) या कर भार (tax burden) कहते हैं।
कर के प्रथम आघात को कराघात (Impact/प्रभाव of tax) कहते हैं। सरकार कर जमा कराने का दायित्व जिस व्यक्ति पर डालती है, उस पर कराघात होता है। किन्तु कर भार के अन्तिम आघात बिंदु पर करापात (incidence of Tax) होता है। अतः करापात उस व्यक्ति पर पड़ता है, जो कर के भार को किसी अन्य व्यक्ति पर डालने में असमर्थ होता है। अर्थात कर का प्रथम आघात कराघात कहलाता है, किन्तु यह भी सम्भव है कि वह व्यक्ति वस्तु की कीमत बढ़ा कर कर भार को दूसरे व्यक्ति पर और दूसरा व्यक्ति, तीसरे व्यक्ति पर डाल दें। करापात उस व्यक्ति पर माना जाएगा जो कर को आगे नहीं डाल सकता।
कर विवर्तन (Shifting of taxation) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति स्वयं पर लगाए गए कर भार को अन्य व्यक्तियों पर डाल देता है। कर का विवर्तन करना कानूनन अपराध नहीं है।
Module – 4:
Public Debt (सार्वजनिक ऋण)
Public debt redemption (सार्वजनिक ऋण का विमोचन/ऋणमुक्ति)
सार्वजनिक ऋण का विमोचन (Redemption of Public Debt):
सार्वजनिक ऋण को चुकाने का अर्थ होता है- विमोचन ।
इसकी विभिन्न पद्धतियाँ हैं:
1. वापसी:
उस पद्धति में परिपक्व ऋणों की वापसी के लिए सरकार नए बाँड और प्रतिभूतियाँ जारी करती है । दूसरे शब्दों में, परिपक्व या पुराने ऋणों के स्थान पर नए ऋण ले लेते हैं । अत: ऋण का बोझ खत्म नहीं होता, बल्कि ऋण वापसी को स्थगित करने से यह जमा होता रहता है ।
2. समापनीय वार्षिकियाँ (Terminable Annuities):
इस पद्धति में सार्वजनिक ऋण की वापसी बराबर की किश्तों में की जाती है । सरकार ऋण के एक अंश की वापसी हर वर्ष समापनीय वार्षिकियाँ जारी करके करती हैं । इस प्रकार ऋण हर वर्ष कम होता जाता और अंततया पूरी तरह समाप्त हो जाता है ।
3. संपरिवर्तन (Conversion):
ब्याज की दर गिरने की स्थिति में सरकार पुराने ऋण को नए में परिवर्तित कर देती है और इस तरह ब्याज के भुगतान को कम कर देती है । यह अनिवार्य अथवा स्वैच्छिक हो सकता है । वापसी के विपरीत संपरिवर्तन के अंतर्गत ब्याज की दर सहित ऋण की शर्तों में भी परिवर्तन होता है । संपरिवर्तन की इस प्रक्रिया को डाल्टन ‘आंशिक अस्वीकरण’ (Partial Repudiation) कहते हैं ।
4. निक्षेप निधि (Sinking Fund):
यह ‘ऋण विमोचन’ को इंगित करता है । उसके अंतर्गत ऋण वापस करने के लिए सरकार प्रतिवर्ष एक अलग कोष का निर्माण करती है और धीरे-धीरे इसका संचयन करती है । हालाँकि वापसी की यह सबसे व्यवस्थित पद्धति है, परंतु यह एक धीमी प्रक्रिया है और वित्तीय संकट के दौरान सरकार इसका अतिक्रमण कर सकती है ।
5. नए कराधान:
इस पद्धति में पुराने ऋणों की अदायगी के लिए सरकार नए कर लगाकर धन एकत्र करती है । यह करदाताओं से संसाधन लेकर बाँड धारकों को दे देती हैं और इस तरह समाज में आय और संपदा का पुनर्वितरण कर देती है ।
6. पूँजीगत उगाही (Capital Levy):
यह एक विशेष ‘विमोचन उगाही’ का संकेत देती है । इस पद्धति के अंतर्गत लोगों की संपत्ति और संपदा पर अकेला परंतु भारी कर लगाया जाता है और इस उगाही से एक ही बार में सारे ऋण पूरी तरह से समाशोधित कर दिए जाते हैं ।
यह उगाही आमतौर पर युद्ध के अनुत्पादक ऋणों की अदायगी के लिए की जाती हैं । इसकी विशेषता यह है कि इससे देश भविष्य में ब्याज अदा करने के बोझ से मुक्त हो जाता है ।
7. बचत का बजट:
बचत के बजट (अर्थात जब आय व्यय से अधिक हो) में सरकार के पास कुछ धन बचता है जिसका प्रयोग ऋणों की अदायगी के लिए किया जा सकता है ।
बचत का बजट दो तरह से हो सकता है:
(1) भारी कर लगाकर या
(2) सरकारी खर्चों में कमी करके ।
8. अधिशेष भुगतान संतुलन:
बाह्य ऋण की अदायगी के लिए अधिशेष भुगतान संतुलन की जरूरत होती है । अत: निर्यात बढ़ाकर और आयात में कमी करके सरकार को आवश्यक विदेशी मुद्रा संचित करनी चाहिए । अस्थायी रूप से बाहर के ऋणों की वापसी बाहर से नए ऋण लेकर की जा सकती है ।
9. मुद्रा विस्तार:
इस पद्धति में सरकार ऋणों का भुगतान करने के लिए अधिक मुद्रा छापती है । इससे मुद्रास्फीति पैदा होती है और स्थिर धन के मूल्य के दावे नष्ट होते हैं । इस पद्धति का प्रयोग जर्मनी ने प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान किया था ।
10. अस्वीकरण:
इसके अंतर्गत सरकार ब्याज या मूल अथवा दोनों को अदा करने से इनकार कर देती है । दूसरे शब्दों में, सरकार लिए हुए ऋणों की अदायगी के प्रति अपने दायित्व को स्वीकार नहीं करती है । 1917 में सोवियत संघ ने अपने तमाम आंतरिक और बाह्य ऋणों को अदा करने से इनकार कर दिया था ।
Financial administration वित्तीय प्रशासन
Financial administration, in general terms, deals with the collection of public revenue and spending on public administration. The financial activities of the government are managed by financial administrative structure to ensure economic growth and inclusive development.
वित्तीय प्रशासन, सामान्य शब्दों में, सार्वजनिक राजस्व के संग्रह और लोक प्रशासन पर खर्च से संबंधित है। आर्थिक विकास और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकार की वित्तीय गतिविधियों को वित्तीय प्रशासनिक संरचना द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
Fiscal Policy (राजकोषीय नीति)
Group – B – History of Economic Thought
Module – 5:
Mercantilism (वणिकवाद)
Physiocracy (भूतंत्र या प्रकृतितंत्र या प्रकृतिवाद )
Physiocrats different from the Mercantilists (HINDI)
Module – 6:
Classical to Neo-Classical Economists (शास्त्रीय से नव-शास्त्रीय अर्थशास्त्री)
Adam Smith
Malthusian Theory of Population (जनसंख्या का माल्थुसियन सिद्धांत)
David Ricardo and his Contribution to economic Literature
Marginal Revolution (सीमांत क्रांति) / Marginal economics (सीमांत अर्थशास्त्र)
Karl Marx – Theory Of Surplus Value (अधिशेष मूल्य का सिद्धांत)
Module – 7:
History of economic thought : Economic ideas of kautilya (आर्थिक चिंतन का इतिहास कौटिल्य के आर्थिक विचार)
History of economic thought: Economic ideas of Mahatma Gandhi (आर्थिक विचारों का इतिहास: महात्मा गांधी के आर्थिक विचार)
Amartya Sen – Welfare economics (कल्याणकारी अर्थशास्त्र)
Capability approach to development economics (अमर्त्य सेन – विकास अर्थशास्त्र के लिए क्षमता दृष्टिकोण)