महात्मा गांधी एक ऐसा नाम था जिसे सुनते ही अंग्रेज थरथर कांपते थे। महात्मा गांधी ने अपने आदर्शों और विचारों की क्रांति से संपूर्ण भारत को एकता की जंजीरों में बांध लिया था और जिसका परिणाम यह हुआ कि उनके द्वारा नेतृत्व किए गए आंदोलनों से ब्रिटिश सरकार को उल्टे पैर वापस भागना पड़ा था।
आज हमारे भारत को स्वतंत्र हुए दशकों बीत गए पर फिर भी महात्मा गांधी को हमेशा याद किया जाता है और मेरा ऐसा मानना है कि जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक महात्मा गांधी को याद किया जाएगा।
हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे महात्मा गांधी के इस निबंध के जरिए उन लोगों को भी महात्मा गांधी को जानने में आसानी होगी जिन्होंने सिर्फ महात्मा गांधी का नाम ही सुना है।
आइए और समय नया व्यक्त करते हुए महात्मा गांधी के ऊपर एक खूबसूरत निबंध (Essay in hindi on Mahatma Gandhi) लिखते हैं।
Essay in Hindi on Mahatma Gandhi
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनका जन्म गुजरात के एक छोटे से गांव पोरबंदर में सन 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। महात्मा गांधी एक धार्मिक हिंदू परिवार में जन्मे थे और उनका धर्म हिंदू था। उनके पिता जी का पूरा नाम करमचंद गांधी था और उनकी माता का नाम पुतलीबाई था।
महात्मा गांधी की माता अत्यंत ही धार्मिक प्रवृत्ति की थी और पूजा पाठ में काफी विश्वास रखती थी। महात्मा गांधी के पिता करमचंद गांधी गुजरात के काठियावाड़ में एक छोटे से रियासत जिसे पोरबंदर के नाम से जाना जाता था वहां के दीवान थे।
महात्मा गांधी की माता पुतलीबाई हमेशा धर्म और आस्था में लींन रहती थी जिसका काफी गहरा प्रभाव गांधी जी के जीवन पर पड़ा।
गांधीजी ने अपने पूरे जीवन काल में कभी भी किसी के साथ कोई छल या कपट नहीं किया, वे सदैव विनम्र और प्यार के भाव से हर किसी से मिलते थे।
महात्मा गांधी कभी अमीर गरीब, जात या छूत अछूत का भेदभाव नहीं करते थे, वे सभी को एक नजरों से देखते थे। गांधीजी का हमेशा से यह मानना था कि किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके वस्त्रों से नहीं होती बल्कि उसके चरित्र से होती है।
गांधी जी का बचपन और प्रारंभिक जीवन
Essay in hindi on mahatma gandhi – महात्मा गांधी अपने माता-पिता की चार संतानों में सबसे छोटे संतान थे। महात्मा गांधी ने अपना बचपन सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, श्रवण कुमार और प्रहलाद की कहानियां सुनकर बिताया और जिसका परिणाम यह हुआ कि उनके मन में सत्य और न्याय की नीव बनी जिसका पालन उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी किया। महात्मा गांधी बचपन से एक सामान्य छात्र थे पर अन्य छात्रों की तरह उन्हें खेलकूद में उतनी दिलचस्पी नहीं थी। गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा गुजरात के राजकोट में अल्फ्रेड हाई स्कूल से हुई थी।
गांधीजी बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहते थे पर वे जिस वैष्णव समाज से ताल्लुक रखते थे उस समाज में चिर फाड की इजाजत नहीं थी, इसीलिए उनका डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया। अपनी स्कूली शिक्षा और मैट्रिक की शिक्षा को समाप्त करने के बाद सन 1888 में महात्मा गांधी ने फैसला किया कि वह इंग्लैंड जाकर वकालत की पढ़ाई करेंगे और एक सफल बैरिस्टर बनेंगे और लोगों को न्याय दिलाने में उनकी मदद करेंगे। महात्मा गांधी ने इंग्लैंड जाने से पहले अपनी माता को वचन दिया था कि वे कभी भी मांस और मदिरा का सेवन नहीं करेंगे और हमेशा सत्य के रास्ते पर ही चलेंगे।
महात्मा गांधी अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के लिए 1888 में इंग्लैंड चले गए और वहां पर उन्होंने लंदन जाकर यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में दाखिला लिया और वहां से अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की। अपनी 4 साल की वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद महात्मा गांधी इंग्लैंड से वापस राजकोट आ गए और फिर मुंबई गए जहां पर उन्होंने अपना पहला केस लड़ा पर कम तजुर्बा होने की वजह से महात्मा गांधी अपने जीवन का पहला केस हार गए थे।
महात्मा गांधी की युवावस्था
Essay in hindi on mahatma gandhi – एक बार महात्मा गांधी के एक करीबी मित्र जो कि दक्षिण अफ्रीका में रहते थे उन्होंने महात्मा गांधी को फोन किया और उन्होंने वहां दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में महात्मा गांधी को जानकारी दी जिसे सुनने के बाद महात्मा गांधी काफी दुखी हुए और उन्होंने शपथ ली कि दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों को वह न्याय दिला कर ही रहेंगे और अपने इसी प्राण को पूरा करने के लिए महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के लिए निकल पड़े।
1906 में दक्षिण दक्षिण अफ्रीका की ट्रांसवाल सरकार ने वहां पर रह रहे भारतीयों के पंजीकरण के लिए एक नया अपमानजनक अध्यादेश जारी किया था इसके कारण भारतीयों को काफी सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। इस अपमानजनक अध्यादेश का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने 1906 में जोहांसबर्ग मैं अपने नेतृत्व में जनसभा का आयोजन किया और इस अध्यादेश का कड़ा विरोध किया।
महात्मा गांधी का यह संघर्ष पूरे सात सालों तक चला और इन 7 सालों में महात्मा गांधी के जीवन में काफी सारे उतार-चढ़ाव आए और उन्हें काफी अधिक संघर्ष करना पड़ा पर वह अपने रास्ते पर डटे रहे और लगातार दक्षिण अफ्रीका की सरकार का विरोध किया जिसका परिणाम यह हुआ दक्षिण अफ्रीका की सरकार महात्मा गांधी के सामने झुकी और उन्होंने अपना अध्यादेश वापस लिया और इस तरह उन्होंने वहां पर रह रहे भारतीयों को उनका हक दिलाया।
गांधीजी ने 6 नवंबर 1913 को दक्षिण अफ्रीका में हो रहे रंगभेद के खिलाफ भी आंदोलन किया था और उन्होंने अपने नेतृत्व में “द ग्रेट मार्च” का आयोजन भी किया था।
महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका से वापसी
सन 1915 को महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलन को समाप्त करके भारत के लिए वापसी की पर उनके भारत पहुंचने से पहले ही उनके द्वारा दक्षिण अफ्रीका में चलाए गए आंदोलनों की चर्चा पूरे भारत में आग की तरह फैल चुकी थी। उस समय भारत अंग्रेजों की गुलामी की जिंदगी जी रहा था और हर भारतीयों के मन में यह इच्छा थी कि अंग्रेजों की गुलामी से किस तरह आजादी मिली।
महात्मा गांधी भी अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों को भलीभांति जानते थे और यही एक वजह थी कि 1915 में भारत लौटने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी की कमान अपने हाथों में ली और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने आंदोलनों को आवाज दी और यहीं से महात्मा गांधी की राजनीतिक जीवन की भी शुरुआत हुई।
आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी का योगदान
ब्रिटिश सरकार से आजादी की लड़ाई की शुरुआत सही मायनों में 1917 से हुई जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में चंपारण सत्याग्रह का आंदोलन शुरू किया गया। ब्रिटिश सरकार बिहार के चंपारण गांव में वहां के गांव वालों से उनके मर्जी के खिलाफ नील की खेती करवा रही थी जिसका भरपूर विरोध महात्मा गांधी ने किया और चंपारण सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
पर दुर्भाग्य वर्ष उसी साल गुजरात के खेड़ा जिले में भयंकर बाढ़ और अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने वहां के गांव वालों से अत्यधिक लगान वसूलना शुरू कर दिया इस वसूली का भी गांधी जी ने अहिंसक होकर विरोध किया और आखिरकार ब्रिटिश सरकार को गांधीजी के सामने घुटने टेकने पड़े।
चंपारण सत्याग्रह के बाद गांधीजी की चर्चा पूरे भारत में होने लगी और इस आंदोलन के बाद उन्हें काफी मान सम्मान भी प्राप्त हुआ। इसी आंदोलन की सफलता को देखकर रविंद्र नाथ टैगोर ने गांधी जी को “महात्मा” की उपाधि दी थी। जिसके बाद से पूरा भारतवर्ष में उन्हें महात्मा या बापू कहकर बुलाने लगा।
गांधीजी के कुछ सफल आंदोलन
ब्रिटिश सरकार से भारत को आजादी दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने कई सारे आंदोलन का नेतृत्व किया था महात्मा गांधी हमेशा अहिंसा का पालन करते थे और उसी मार्ग पर चलते हुए ही उन्होंने कई आंदोलनों चलाएं।
जब भी ब्रिटिश सरकार अपनी तानाशाही भारत और भारत के नागरिकों पर करती थी उसके जवाब में महात्मा गांधी ब्रिटिश सरकार के सामने अपनी आंदोलन की दीवार खड़ी कर देते थे। सिर्फ अंग्रेजों से लड़ाई के लिए ही नहीं महात्मा गांधी ने भारत में हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भी आंदोलन किए थे जिस वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था परंतु उसके बावजूद उनका हौसला नहीं टूटा और वह अपने मार्ग पर दृढ़ रहे।
असहयोग आंदोलन
गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन की चर्चा पूरे भारत में हुई थी। ब्रिटिश सरकार के जनरल डायर ने पंजाब के जलियांवाला बाग में सन 13 अप्रैल 1919 को कई सारे बेकसूर भारतीयों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था जिस वजह से कई बेकसूर लोगों की मौत हो गई थी।
अंग्रेज सरकार द्वारा किए गए इस कायरता पूर्ण व्यवहार को देखकर गांधीजी काफी भावुक हुए और उसके बाद उन्होंने फैसला लिया असहयोग आंदोलन (non cooperative movement) की शुरुआत करने का। इस आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य था भारत को ब्रिटिश सरकार की हुकूमत से आजादी दिलाने का क्योंकि ब्रिटिश सरकार का अत्याचार भारत के ऊपर इतना बढ़ गया था कि अब महात्मा गांधी से चुप नहीं बैठा जा सकता था।
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए इस असहयोग आंदोलन को पूरे भारत से समर्थन मिला और उसी के बाद महात्मा गांधी ने ठान लिया था कि अब भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिला कर ही रहेंगे।
असहयोग आंदोलन ही वह आंदोलन था जिसके बाद लोगों ने सूती वस्त्र और भारतीय वस्तुओं का अपनाना शुरू किया और विदेशी कपड़ों को जलाकर ब्रिटिश हुकूमत को अपना पैगाम दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन
जब ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार भारतीयों पर दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था तब महात्मा गांधी ने फैसला लिया कि वह भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व करेंगे जिसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों को भारत से भगाना।
महात्मा गांधी ने इस आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 को की थी। यह वह दौर था जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और बाकी देशों की तरह ब्रिटिश सरकार भी अन्य देशों के साथ युद्ध में व्यस्त थी। अंग्रेजों के पास सेना की कमी हो रही थी और इसी कमी को पूरा करने के लिए अंग्रेजों ने भारतीयों को ब्रिटिश सेना में शामिल होने का न्योता दिया पर भारतीयों ने सेना में भर्ती होने से साफ इंकार कर दिया था।
हर भारतीय को इस बात का गर्व होना चाहिए कि महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए इस भारत छोड़ो आंदोलन का ही नतीजा था कि 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आजादी मिली और महात्मा गांधी के इस आंदोलन के सामने ब्रिटिश हुकूमत ने अपने घुटने टेक दिए थे।
महात्मा गांधी का निधन
30 जनवरी 1948 की शाम को दिल्ली के बिरला भवन में महात्मा गांधी एक सभा को संबोधित कर रहे थे कि उसी समय नाथूराम गोडसे ने अपनी पिस्तौल से गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
इस हत्याकांड के बाद नाथूराम गोडसे सहित सात अन्य लोगों को भी दोषी पाया गया था जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया था। जब महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा निकली तो उस अंतिम यात्रा को अपना सहयोग देने के लिए 8 किलोमीटर लंबी लाइन लग गई थी, यह पूरे भारतवर्ष के लिए अत्यंत ही दुख का क्षण था।
निष्कर्ष
मुझे पूरी उम्मीद है कि महात्मा गांधी पर लिखा गया यह निबंध essay in hindi on mahatma gandhi आप लोगों को काफी पसंद आया होगा और मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि अगर आपको हमारे यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर शेयर करें और हमारे वेबसाइट Hindi Master के साथ जुड़े और हमारे परिवार का हिस्सा बने।